आलोचना >> सदी की चौखट पर कविता सदी की चौखट पर कविताअरुण शीतांश
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युवा कवि, आलोचक अरुण शीतांश उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं, जो साहित्य में लिखे गये और लिखे जा रहे को अपनी तरह से, अपने समय-सन्दर्भ में देखने-समझने की हिमायती है, ज़ाहिर है यही आग्रह उसे परख की प्रेरणा देता है, ‘साहित्य की दुनिया में जो थोड़ा काम हो रहा है, वह काम समूहबाजी में खप रहा है’ यह कहकर लेखक साफ संदेश दे रहा है कि जितना लिख जा रहा है, उसका अधिकांश गुटबाजी, खेमेबाजी की भेंट चढ़ जा रहा है, जिससे बेहतर साहित्य की अनदेखी भी हो रही है, इस अर्थ में देखें तो यह पुस्तक ‘सदी की चौखट पर कविता’ उसी बेहतर की पहचान और परख की कोशिश है।
आधुनिक हिन्दी कविता में अज्ञेय एक ऐसा नाम है, जो अपने रचनात्मक व्यक्तित्व की उपस्थिति से अपने जीवन काल में जितना अनिवार्य बना रहा, उतना ही जीवन के बाद भी। वह साहित्य की पीढ़ियों को वैचारिक उत्तेजना और विमर्श का पक्ष उपलब्ध कराते हैं। उनके रचना संसार में हर पीढ़ी इस तरह प्रवेश करती है जैसे किसी वंडरलैंड की यात्रा। अरुण शीतांश भी ‘किसने देखा चांद बदली के बाद’ के जरिये ऐसी ही यात्रा करते हैं। ‘अज्ञेय अपने वक्तव्य में कहते हैं – ‘आधुनिक युग का साधारण व्यक्ति यौन वर्जनाओ का पुंज है इस आलोक में अरुण शीतांश का यह आलेख खंडन-मंडन से शुरू होता है, लेकिन अज्ञेय को पढ़ना क्यों अनिवार्य है, इसकी पड़ताल भी करता है।
कृष्णा सोबती से लेकर विष्णु खरे तक के रचना संसार में ताक-झांक करती इस पुस्तक का फैला कैनवास अरुण शीतांश के अध्यवसाय, जिज्ञासा और निजी उत्खनन का समुच्चय है। भावावेग निर्बाध है, इसलिए इस पुस्तक में कूल किनारों का अतिक्रमण आये तो आश्चर्य नहीं। यह पुस्तक युवा कवि के सद्प्रयास का प्रस्थान है। जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
– अवधेश प्रीत
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